योग क्या है ? योग की परिभाषा बताये : योग का अर्थ है जोड़ना. यह गुप्त विद्या नहीं है. गुप्त विद्या से यहां आशय है की जिस तरह कुछ धर्मगुरु अपने मत की दीक्षा देते है और दीक्षित व्यक्ति को ही कोई मंत्र दिया जाता है, जिसे वह गुप्त रखता है, उसी तरह किसी भी विद्या या कार्य को सिखने के लिए या उसमे पारंगत सफल होने के लिए मार्गदर्शन करने वाले गुरु को भी आवश्यकता होती है, लेकिन योग में गुरु कोई भी बात गुप्त रखने के लिए नहीं कहता आगे पढ़िए yoga definition in Hindi.
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योग क्या है परिभाषा बताये
Definition Of Yoga in Hindi
योग में जोड़ने का अर्थ – मन, शरीर और इन्द्रियों को साधकर एक और लगाना. यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह किसी भी काम को आप जितना तन्मय होकर करते है, आपको उसमे उतनी ही सफलता मिलती है. इसी तरह अगर आप मन, शरीर और इन्द्रियों को वाश में करके किसी एक ओर लगाएंगे तो आप कुछ भी करने में समर्थ होंगे – प्रभु को भी प्राप्त कर सकेंगे और मोक्ष को भी पा सकेंगे.
योग सिद्ध करने के लिए न तो आपको साधु बनने की जरुरत है और न ही परिवार का त्याग करने की. साधारण व्यक्त, जो कोई भी काम करता हो, किसी भी जाती का हो या किसी भी धर्म में आस्था रखता हो, योग सिद्ध कर सकता है.
योगीजन योग द्वारा मोक्ष को प्राप्त करते है, लेकिन योग इस बात के लिए किसी को विवश नहीं करता. योग-सिद्धि का चरम लक्ष्य जीवन को समझना ही है, लेकिन अगर साधारण व्यक्ति योगविद्या में पारंगत हो जाता है, तो वह साधारण से असाधारण व्यक्ति बन जाता है.
योग के द्वारा कई दशाओं को पार करता हुआ वह व्यक्ति मन और आत्मा का विकास करता हुआ आत्मज्ञान को प्राप्त करता है और यह होता है यह, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धरना और समाधी से. आइये इन आठों प्रक्रियाओं को छोटे रूप में समझने की कोशिश करते है.
- अगर आपको योग के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, तो इस परिभाषा के पोस्ट को पड़ने के बाद यह पड़ें योग करने के सही तरीके : नियम, सावधानियां इसमें हमने योग के बारे में नियम सावधानियां और विधियां बताई है.
1. यम – सामाजिक व्यवहार में आने वाले नियनो को यह कहते है. जैसे किसी को न सताना, यातना न देना, लोभ लालच न करना, चोरी डकैती न करना यानी ऐसा कोई काम नहीं करना जिससे मानव समाज के किसी भी अंग को हित होता हो. यानी सत्य के ऊपर जीवन जीना, बिना कुछ गलत किये.
2. नियम – इसका सम्बन्ध आपके अपने चरित्र से है. व्यक्तिगत चरित्र स्वेच्छा और उत्तम होना चाहिए. जब आपका अपना चरित्र ठीक होगा, तो आप समाज के एक श्रेष्ठ अंग बन जायेंगे. श्रेष्ठ समाज उत्तम व्यक्तियों से ही मिलकर बनता है.
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3. आसान – शरीर के विभिन्न अंगों के विकास के लिए जो योगिक क्रियाये की जाती है, उन्हें आसान कहा जाता है. जैसे रोजाना योग करना.
- 4. प्राणायाम – यु तो प्राण विज्ञानं बहुत व्यापक विषय है, लेकिन इसके अनेक अंगों का संक्षिप्त विवरण इस तरह है.
1. प्राणवायु को संतुलित रूप से लेना.
2. नियमित रूप से गहरा और लम्बा सांस लेना.
3. प्राण पर सदैव ध्यान रखना. यह बहुत कठिन कार्य है, लेकिन जो इस पर सिद्धि पा लेता है, वह दीर्घायु तो प्राप्त करा ही है, साथ ही एक उच्च और सफल व्यक्ति भी बन जाता है.
5. प्रत्याहार – किसी भी वस्तु में लिप्त न होना, यानी पद्मपत्र मिवाम्भसा – जैसे कीचड़ में कमल रहता है, उसी तरह रहना. कमल पानी और कीचड़ में पलटा है, लेकिन सदा उनसे ऊपर खिलता है. संसार के बंधनो में न बांधना ही प्रत्याहार है. लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं की आप गृहस्थ न हो या बच्चे पैदा न करे. समस्त सांसारिक कर्म निभाते हुए भी उनके मोहक मायाजाल में न फंसे. यही प्रत्याहार कहलाता है.
6. धारणा– अपने मन को एकाग्र करना या एकाग्रचित होना ही धारणा है, यह बहुत बड़ी बात है और जीवन में सफलता की कुंजी है. योग में ऐसे कई आसान और कियाए है जो की एकाग्रता को बढाती है.
7. ध्यान –निर्विचार अवस्था में खोना, ध्यान करना सीधे बैठकर अपनी आती जाती साँस को देखना बिना कोई विचार किये सिर्फ स्वांस पर ही ध्यान देना, ऐसा करने से धीरे-धीरे ध्यान की अवस्था प्राप्त होने लगती है और मन बहुत शांत हो जाता है.
- योग एक स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर की पहली जरुरत है. खासकर आज के मानव के लिए योग अमृत सामान है.
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8. समाधि –पहले ध्यान लगता है उसके बाद जब आप ध्यान में सिद्धि पा लेते है तो फिर समाधी लगती है. जिसमे आपको आनद की दुनिया में प्रवेश कर जाते है.
इन आठ प्रक्रियाओं का उद्देश्य यही है की मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए आप तैयार हो जाए, एक उपयुक्त पात्र बन जाए. इन सब कार्यों से आपका शरीर स्वस्थ होगा, उसके विकार दूर होंगे. आपका मन स्वच्छ होगा, शांत होगा और आप एक आदर्श व्यक्ति होंगे. आपकी बुद्धि तेज हो जाएगी आप के चेहरा पर अलग ही तेज चमकने लगेगा.
तो अब आप समझ गए होंगे की योग क्या है योग क्यों करना चाहिए और योग की परिभाषा क्या होती है आदि. योग हमारे जीवन की अहम् जरूरत है. अगर हम रोजाना योग करे तो हमारे जीवन की आधी से ज्यादा समस्याए, तनाव आदि तो यूंही ख़त्म हो जाते है.
योग सिर्फ शरीर ही स्वस्थ नहीं करता बल्कि मन को भी शांत और स्वच्छ करता है. इसके अलावा आपको एक अनूठा इंसान बनता है. जब आप योग में अच्छा करने लगते है तो आप महसूस करने लगते है की ऐसा कोई काम नहीं जो आप नहीं कर सकते हो. आपके लिए सब आसान मालूम होंगे लगता है.
योग का उपदेश सर्वप्रथम किसने दिया ?
- योग का उपदेश सबसे पहले “Adi yogi” ने दिया, आदि योगी के सात शिष्य थे जिन्हे सप्त ऋषि भी कहा जाता है, सबसे पहले उन्होंने योग का प्रचार प्रसार और उपदेश दिए यह बहुत ही पुरानी बात है. आदि योगी यानी “शिव”. इसके बाद पतंजलि ने योग के उपदेशों को आगे बढ़ाया और फिर धीरे-धीरे योग जगह पर फेल गया और कई योगी बन गए. आज योग शब्द को सभी जानते है और कई लोग इसके अभ्यास में भी जुड़े है.
- योग वैदिक युग से चलता आरहा है, इसे करीबन 5000 सालों से ज्यादा समय हो चूका है. पतंजलि ने योग सूत्र बनाये और योग की गहराईयों को सब के सामने लाये, कैसे आप अंतस में प्रवेश कर सकते है कोन से योग से क्या लाभ होता है आदि इन सब के विषय में पतंजलि ने गहन वार्ता करते हुए सभी का खुलासा किया. इस तरह आदि योगी के सप्तऋषिओं द्वारा योग का प्रथम उपदेश शुरू हुआ.
योग कब करे किस समय पर करे
- योग रोजाना सुबह के समय करे, जितने जल्दी हो सके सुबह के समय पर करे. आप सुबह 5
बजे से लेकर सुबह 9 बजे तक योग कर सकते है.
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योग करते समय किन बातों पर ध्यान दें
- योग हमेशा खाली पेट होने पर करना चाहिए
- योग करने से पहले शौच पेट साफ़ जरूर करे
- योग करने से 10-15 मिनट पहले दूध पि सकते है
- योग करते समय ढीले कपडे पहले
- शुरुआत में योग करते समय आराम से करे. शरीर जितना झुक सके उतना झुकाये ज्यादा जोर जबरदस्ती न करे.
- शुरुआत में थोड़ी तकलीफ होगी आलस्य आएंगे लेकिन आप हार मत मानना
- योग प्राणायाम करने के बाद 10 मिनट के लिए शवासन मुद्रा में बैठ जाएअब आज से आप भी संकल्प करे की आप भी रोजाना सूर्य नमस्कार, योग और प्राणायाम जरूर करेंगे. रोजाना आधे घंटा सुबह का योग को जरूर दें.