सकम्प लकवा ईलाज
यह रोग प्रौढ़ावस्था की क्षीणता के कारण मस्तिष्क में उत्पन्न हो जाता हैं, जिससे मस्तिष्क के एक विशेष भाग के तंतु कोष और उन कोशों के सूक्ष्म तंतु धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं. फलस्वरूप रोगी के शरीर में धीरे-धीरे कड़ापन बढ़ता जाता हैं. उसका लचीलापन कम हो जाता हैं. अधिकतर हाथ की अंगुलियों में धीरे धीरे कंपापि बढ़ती जाती हैं, जो सारे शरीर में फैलती सी प्रतीत होती हैं.
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वह शरीर के किसी एक भाग को ही अधिकतर आक्रांत करती हैं. कुछ रोगियों में कंपकपी के साथ कड़ापन भी मौजूद रहता हैं. हाथ पैरों की यह अकड़न धीरे-धीरे बढ़कर गर्दन की मांसपेशियों तथा पैर और छाती की मांसपेशियों में कड़ापन पैदा कर देती हैं.
मांसपेशियों की अकड़न और कंपकपी के कारण चाहने पर भी रोगी विश्राम लेने में असमर्थ हो जाता हैं. उसके चलते सारे शरीर में पीड़ा तथा थकावट की अनुभूति होती हैं.
रोग के शुरुआत में निश्चित रूप से देखा गया हैं की ऐसे रोगी कब्ज से पीड़ित रहते हैं. उसके मुंह से इतनी दुर्गन्ध आती हैं, जिससे उनके पास बैठना मुश्किल हो जाता हैं. कब्ज और रोग वृद्धि साथ साथ चलते हैं. रोग की प्रथमावस्था में रोगी को अगर वह लिखे पढाई का काम करता हैं तो लिखने में कड़ापन आ जाने के कारण कठिनाई अनुभव होती हैं. वह सूक्ष्मलीपी लिखने लगता हैं. उसकी आवाज़ में भारीपन आ जाता हैं. यब भी रोग का एक लक्षण हैं.
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