शरीर के निचले हिस्से में लकवा
यह शरीर के निचले आधे भाग, यानी कटी प्रदेश से पैरों की उंगुलियों तक का लकवा हैं. इसमें शरीर के आधे भाग के सभी अंगों की असम्पूर्ण या सम्पूर्ण शक्ति नष्ट हो जाती हैं. यह रोग अनजाने में धीरे-धीरे आक्रमण करता हैं. यह रोग जब होने को होता हैं तो सबसे पहले साधारण ज्वर होता हैं, फिर पैरों में निर्बलता आने लगती हैं. साथ ही पैर सुन्न पड़ जाते हैं. इसके बाद दोनों पैर में रोग फैल जाता हैं.
मूत्राशय, मलाशय, और गुदा में इस रोग का हमला होने पर रोगी को मल-मूत्र विसर्जन में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता हैं. कभी-कभी तो पुरे तौर से मल मूत्र का होना बंद हो जाता हैं और कभी लगातार मल मूत्र निकलता रहता हैं.
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इस रोग की सामान्य अवस्था में रोगी के पैरों की शक्ति एक के बाद एक नष्ट होती जाती हैं. रोगी को सदा कब्ज रहने लगता हैं. वह मल मूत्र या अधोवायु के वेग को अपनी इच्छानुसार संचालित नहीं कर सकता हैं, यह सब क्रिया अपने आप होती हैं वह न तो इन्हें रोक सकता हैं और न इनको अपनी मर्जी के अनुसार बदल सकता हैं.
इसमें कभी-कभी तापमान 103-107 डिग्री तक हो जाता हैं और कभी कभी तो इससे अधिक भी. तब रोगी का प्राणांत हो जाता हैं, रोगी मर जाता हैं.
मेरुमज्जा पर गहरी चोट या दबाव पड़ने से भी इस तरह का लकवा हो जाता हैं, लेकिन तब रोग का आक्रमण सबसे पहले पिठवले भाग पर होता हैं. उसके बाद धीरे-धीरे रोग फैलकर हाथ पैर में मूत्राशय और मलाशय आदि में नींमांग के लकवा के रूप में प्रकट होता हैं. कभी कभी मस्तिष्क में रक्त के जमाव से भी यह रोग हो जाता हैं.
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